पोटका विधानसभा का पहला गांव कीताकोचा जहां  बिजली , सड़क व पानी से महरूम है पूरा गांव

  ग्रामीणों ने प्रदर्शन कर जताया विरोध

 नदी के बीच बने गड्ढे  से इंसान ओर पशु-पक्षी की बुझती है प्यास

जादूगोड़ा : यह चौका देने वाली तस्वीर  पोटका विधानसभा अंतर्गत  कीताकोचा की है जो  पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया प्रखंड अंतर्गत  केंदुआ पंचायत  का है. एक ओर जहां झारखंड झारखंड आदिवासियों के उत्थान को लेकर  कई बड़े -बड़े  दावे करती है जबकि स्थिति इसके विपरित है। आदिवासियों के उत्थान के लिए बनी योजना धरातल पर नही उतरकर पेपर-कलम पर ही सिमट कर रह गई है यहां विकास की किरणे नही पहुंच पाई .इस गांव  में बिजली के पोल तक नही गाड़े  गए.ऐसे कई गांव की विडंबना है जबकि प्रधानमंत्री विद्युतीकरण योजना के तहत यहां  से सात किलो मीटर स्थित सहारजुड़ी बिजली आपूर्ति की जाती है। बिजली के अभाव में कीताकोचा  उत्क्रमित मध्य  विद्यालय के 25 बच्चे भीषण गर्मी में भी स्कूल आने को भी विवश है व बिना पंखा के ही यहां  के बच्चे पढ़ाई करते है व संध्या होते ही पूरा गांव अंधेरे में छा जाता है.मानो आज भी ये गाँव सरकारी सुविधाओं से कोसो दूर है गांव  में न तो चापाकल है  न ही कुआं। ऐसे में 30 आदिवासी परिवार  गांव के बगल से बहती सूखे झरने के नीचे बांस  का पट्टी लगाकर पानी भरते है अन्य लोग उसी जगह  गड्ढा खोदकर जमे पानी से नहाने से लेकर अन्य दिनचर्या कार्य करते है। यहां पशु-पक्षी व इंसान दोनो इसी घाट से पानी लेते है ओर प्यास बुझाती है ।  जिसकी सुधि लेने वाला कोई नही है. जिसको लेकर आज ग्रामीणों का सब्र का बांध टूट गया व ग्रामीणों ने  प्रदर्शन कर विरोध जताया। यह हालत इसी एक गांव की नही  है। बल्कि इसी तरह के हालात से चमडूगोड़ा, झरोदा, पांडू कोचा के ग्रामीण भी जूझ रहे है।

कई बार जनता दरबार में ग्रामीणों ने उठाई मांग, नही हुई सुनवाई 

  पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया प्रखंड अंतर्गत कीता कोचा के आदिवासी बिजली, पानी  व सड़क को लेकर जनता दरबार में कई बार आवेदन दिया लेकिन सभी आवेदन को फाइलों में बांध कर बक्सों में भरकर ताला लगा दिया गया है (यानी फाड़ कर फेंक दिया गया) गांव  के ग्रामीण तिआड़ी सामंत,  पोरेन सरदार , नागुम सरदार, विगर सामंत, सोगा  सामंत,बाबू लाल सरदार, खुदी राम  सरदार कहते है कि  चुनाव के वक्त  पार्टी के नेता आते है वोट लेकर दोबारा नही आते। ग्रामीणों को आज तक  सिर्फ आश्वासन ही आश्वासन मिला।बिजली के अभाव में यह गांव आज भी दिबरी युग में जीने को विवश है।फिरहाल अब देखना है कि इन गरीबो का मसीहा बनकर कौन आगे आता है ।

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