प्रकृति पर्व सरहुल आज

रांची। प्रकृति पर्व के उल्लास में पूरा झारखंड झुम रहा है। सखुआ के सुगंधित फूल से राज्य की फिजा महक रही है। आदिवासी समुदाय पिछले कई दिनों से अखड़ा में सरहुल को लेकर मांडर की थाप पर नृत्य अभ्यास कर रहा है।

आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान के रुप में झारखंड को जाना जाता है। जहां बोलना, गीत और चलना ही नृत्य कहा जाता है। मंगलवार को राज्य भर में सरहुल पर्व धूमधाम से मनाया जायेगा। सरहुल को लेकर रांची सहित राज्य भर के अखड़ा में आदिवासी समुदाय की तैयारियां पूरी कर ली गयी है। इसे लेकर सोमवार को रांची के सभी सरना स्थलों को शानदार तरीके से सजाया गया है। आदिवासियों के पुरोहित पाहन ने उपवास रखकर विधिवत पूजा-अर्चना की। विभिन्न मुहल्लों के लोग नदी-तालाबों से मछली और केकड़ा पकड़ने निकले। परम्परा के अनुसार, केकड़ों को पूजा के बाद सफेद धागे में बांधकर चूल्हे के ऊपर टांग दिया गया। आदिवासियों में यह परम्परा शुभ के तौर पर निभाई जाती है। सरना स्थलों पर भजन-कीर्तन और पारंपरिक नृत्य का आयोजन किया गया। वहीं सुबह होते ही हातमा, सिरमटोली, देशावली समेत अन्य सरना स्थलों पर महतो पद के लोग पूजा के लिए मिट्टी के घड़े लाए और कोटवारों ने इन घड़ों में पानी भरा। जिसे पाहन ने संपन्न कराया।

पांच रंग के मुर्गों की दी बलि

रिवाज के रुप में पांच रंगों के मुर्गों की बलि चढ़ाई गई, जो विभिन्न देवताओं और परंपराओं का प्रतीक माने जाते हैं। लाल मुर्गा ग्राम देवता के सम्मान में, सफेद मुर्गा सूर्य को, माला मुर्गा खेत-खलिहान की समृद्धि के लिए, काली मुर्गी बुरी आत्माओं को शांत करने के लिए और गोली मुर्गी की बलि पूर्वजों की याद में दी गई।

आदिवासी हॉस्टल और दो मौजा के पाहन पहुंचे हातमा

सरना स्थल पर मिट्टी के घड़े में पानी भरने की परंपरा निभाने के लिए तीन आदिवासी हॉस्टल और दो मौजा के पाहन नृत्य करते हुए हातमा सरना स्थल पहुंचे। वहां पाहन जगलाल पाहन ने सभी मौजा के पाहनों को पवित्र जल देकर सम्मानपूर्वक विदा किया। इसके बाद सभी पाहनों ने अपने-अपने स्तर से घड़ों में पानी भरा।

घड़ों में पानी के स्तर से होगी बारिश की भविष्यवाणी

इस धार्मिक अनुष्ठान के साथ मंगलवार की सुबह इस साल बारिश की भविष्यवाणी की जाएगी। पाहन सरना स्थल पर घड़ों में रखे पानी और मौसम की स्थिति का आकलन कर यह भविष्यवाणी करेंगे कि इस वर्ष बारिश कैसी होगी।

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