- बांस का सामान बना कर गुजर-बसर करते हैं महली परिवार के लोग
- वन विभाग चलती है बिचौलिए के रहमो-करम पर –
मुकेश रंजन, ब्यूरो प्रमुख
रांची। कानून बनाये जाने के बाद भी कांके प्रखंड के ग्रामीणों को बांस की खेती में अब तक सामुदायिक अधिकार नहीं मिल पाया है। अधिकार नहीं होने के बाद भी बांस पर निर्भर रहने वाले लोगों का परिवार गरीबी मिटा कर खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा है। बांस लघु उद्योग एवं घरेलू उपयोग की चीजों के उत्पादन का अच्छा साधन है। कांके प्रखंड से 20 किलोमीटर की दूरी पर बसी छोटी बस्ती आवर छापर गांव में आदिवासी महली परिवार हैं। ये महली परिवार बांस से बनी वस्तुओं व बांस की खेती से अपनी गरीबी दूर कर रहे हैं। यहां के आदिवासी अपनी मर्जी से कारोबार कर रहे हैं। गांव के देवेंद्र महली ने बताया कि बांस कि खेती कम लागत में बेहतर मुनाफा देती है।उमेश महली का कहना है कि पापा और परिवार के लोग बांस से बने वस्तु बांस की खेती नहीं बनाते तो शायद मैं पढ़ाई नहीं कर पाता।
स्थानीय लोग बताते हैं कि बांस की वस्तुओं का निर्माण करने वाले लोग (बंसोड़ो) एक विशेष समुदाय के लोग होते हैं। इनके द्वारा बनायी गयी सामग्री में सूप, खांचा, झोड़ी, टोकरी, बांस का झाडू, पंखा, धान रखने वाला डिमनी आदि शामिल हैं। इस सामग्री को निकट बाजार ले जाकर उचित मूल्य पर बेचा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि बांस द्वारा बनायी गयी सामग्री मांडर, इटकी, ठाकुरगांव, पिठोरिया, कांके, ओरमांझी और रामगढ़ भेजते हैं. ये लोग बांस की बनी सामग्री को साप्ताहिक हाट में ले जाकर बेचते हैं। इसके अलावा कच्चे घरों में बांस का उपयोग किया जाता है।
वन विभाग के अधिकारी करते हैं परेशान –
ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग के अधिकारी हमेशा से परेशान करते रहते हैं। बांस लेने के लिए दूरदराज के गांव से आते हैं। लेकिन गांव से निकलते तो वन के अधिकारी व प्रहरी दोनों परेशान करते हैं। इस कार्य में बिचौलियों कि भूमिका अहम रहती है। वन विभाग के आला अधिकारी से शिकायत करने पर हम ग्रामीणों को डरा धमका कर जेल भेज देने की बात कर शांत कर देते हैं। इधर वन विभाग के अधिकारी ने कहा कि हमारे ऊपर लगाये गये आरोप गलत है। आरोप सही पाया जायेगा तो भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई की जायेगी।
वन विभाग चलती है बिचौलिए के रहमो-करम पर –
बताया जाता है कि वन विभाग अधिकारी दलालों के माध्यम से पेड़ लगाने का कार्य मेज के नीचे से होता है। अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक सभी लोगों को संपलिप्त होते हैं। अर्चना आम जनता को भुगतना पड़ता है।
ईडी कारवाई करें तो होगा उद्वेदन –
वन विभाग के अधिकारी पर ईडी कार्रवाई करती है तो बड़े पैमाने पर पैसे का उद्वेदन होगा। इस मामले में वन विभाग के आला अधिकारी से पेटीधारी तक नपेंगे।