डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची के संयुक्त तत्वाधान में एक व्याख्यान का आयोजन।
रांची: डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के सभागार में , जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के बीच अंतर्संबंध और विशेषताएं, विषय पर एक व्याख्यान सह कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह व्याख्यान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के संयुक्त सौजन्य से आयोजित किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य ने भारतीय जनजातियों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भारत की जनजातीय मुख्य तौर पर समग्रता में भौगोलिक दृष्टिकोण से मध्य प्रदेश, असम, केरल और बिहार,झारखंड के क्षेत्रों में निवास करती है। उन्होंने कहा कि यह भारत की विशेषता है कि इन जातीय विभिन्नताओं के बावजूद इनके मौलिक स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं आया है। उन्होंने अपने संबोधन में कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों की चर्चा करते हुए बताया कि भारत में करीब 216 जनजातीय समूह है और यह देश की कुल जनसंख्या का 8 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की अधिक है कि लुप्त प्रायः जनजातियों की खोज और उनपर शोध कार्य किया जाए। मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रित रांची विश्वविद्यालय के सेवा निवृत प्रोफेसर डॉ एच एन सिंह ने झारखंड में तीन भाषा परिवारों का उल्लेख करते हुए कहा कि ऑस्ट्रिक, द्रविड़ और आर्य भाषा है। उन्होंने कहा कि चलना ही नृत्य है और बोलना ही गीत है। उन्होंने कहा कि जिस भाषा जितनी अधिक ग्रहण शक्ति होती है वह भाषा उतनी ही अधिक उन्नत होती है। विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित झारखंड मुक्त विश्वविद्यालय, रांची के कुलपति डॉ टी एन साहू ने कहा कि जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के आधार एक ही है। उन्होंने भी विस्तार से जनजातीय समुदाय का वर्णन किया। कार्यक्रम के समन्वयक DSPMU के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के डॉ बिनोद कुमार ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय प्रवेश और अपना व्याख्यान दिया। मौके पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची के क्षेत्रीय निदेशक डॉ कुमार संजय झा, डॉ जिंदर सिंह मुंडा सहित सभी शिक्षक और विद्यार्थी मौजूद थे। यह जानकारी पीआरओ डॉ राजेश कुमार सिंह ने दी।