चंपई सोरेन को भाजपा सत्ता की कुंजी मानकर चल रही है
संतोष वर्मा
चाईबासा। चंपई सोरेन त्याग,आन्दोलन और बलिदान के झारखंडी चादर को उतार कर भाजपा के भगवा रंग के चादर ओढ़ कर अपनी राजनितिक जीवन के दूसरे अध्याय की शुरआत करने जा रहे हैं। कोल्हान में अब जेएमएम का टाईगर की जगह कौन होगा,यह भी चर्चा हो रही है। शहीदों,बलिदानों की धारती में अलग राज्य का आंदोलन से अब तक यानी जेएमएम के एक कार्यकर्ता से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक के अपनी राजनितिक जीवन को समर्पित करने वाले नेता चंपई सोरेन का अन्त हो गया।सूत्रों के अनुसार यदि जेएमएम चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री नहीं बनाया होता तो आज चंपई सोरेन जेएमएम के कोल्हान टाईगर बने रहते और पार्टी में सेकंड लाईन के नेता के रूप में खुश रहते। चंपई सोरेन के इस घटना से राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजनीतिक में नेता की आकांक्षा, महत्वकाक्षा और अपेक्षा की पूर्ति नहीं होने से किसी भी गलत कदम को अपने राजनितिक स्वार्थ में उठा लेते हैं, यह भी उसी स्वार्थ का एक पहलु है। कोल्हान की राजनीतिक में चंपई सोरेन के द्वारा भाजपा कितना लाभ पार्टी को दिलाने में कामयाब हो पाती है, यह तो विधानसभा चुनाव में साफ हो जायेगा, साथ ही चंपई सोरेन के अन्तिम राजनितिक जीवन का भी रुख किया होगा।भाजपा कोल्हान के साथ साथ संथाल में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए किस हद तक चंपई सोरेन का इस्तेमाल कर पाती है, यह तो भाजपा का अंदरूनी मामला है। लेकिन चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के फैसले के बाद भाजपा के आदिवासी नेताओं को सांप सूंघ गया है, अन्दर ही अन्दर तीनो पूर्व मुख्यमंत्री में बेचैनी देखी जा रही है, ऐसा लगता है कि चंपई सोरेन भाजपा में मुख्यमंत्री का चेहरा होंगें,जिसका एहसास तीनों पूर्व मुख्यमंत्री को हो चूका है। पार्टी अपने तीनों पूर्व मुख्यमंत्री का घटता जनाधार को लेकर भी चिन्तित है, इस लिए भाजपा चंपई सोरेन पर भरोसा करने और विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने की कोशिश में लगी हुई है।लोकसभा चुनाव में भाजपा को कोल्हान और संथाल में आदिवासी बहुल क्षेत्र की जनता का साथ नहीं मिलने के कारण भाजपा होने वाली विधानसभा चुनाव में जनाधार खो चुके तीनों पूर्व मुख्यमंत्री पर कोई रिस्क नहीं उठाना चाहते हैं, इस लिए पार्टी अपनी नई रणनीति के तहत चंपई सोरेन को सत्ता का कुंजी मानकर पुरी तरह से दांव खेलने जा रही है। विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने पार्टी के तीनों पूर्व मुख्यमंत्री पर कोई रिस्क नहीं उठाना चाहती है। लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने पार्टी के तीन आदिवासी पूर्व मुख्यमंत्री के घटते जनाधार और जनता के बीच पकड़ कमजोर होती नज़र आते ही विधनसभा में चंपई सोरेन को आदिवासी का बड़ा चेहरा बनाने पर विचार कर रही है।