बसंत के मौसम में सरहुल खुशियों के पैगाम का प्रतीक: डॉ तपन कुमार शांडिल्य

राँची : डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के प्रांगण में सरहुल महोत्सव का आयोजन किया गया। यह आयोजन विश्वविद्यालय के विभिन्न जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागों के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। मौके पर प्रकृति पर्व सरहुल का आयोजन पूरे विधि विधान और नृत्य संगीत के साथ किया गया। इस अवसर विशिष्ट अतिथिगणों में झारखंड ओपन यूनिवर्सिटी, रांची के कुलपति डॉ टीएन साहू, पूर्व कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा, पूर्व कार्यकारी कुलपति डॉ यूसी मेहता, पद्मश्री मुकुंद नायक और पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख और डॉ सर्वोत्तम कुमार विशेष तौर पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि सरहुल झारखंड का सबसे बड़ा नृत्य उत्सव है । झारखंड के विषय में यह कहा जाता कि यहां चलना, नृत्य व बोलना ही गीत संगीत का परिचायक है। उन्होंने आगे कहा कि सरहुल पर्व के मौके पर निकाली गई शोभायात्रा में शामिल सभी आयु वर्ग के लोग एक लय और ताल में नृत्य और एकता का संदेश देते हैं । कुलपति डॉ तपन कुमार ने आगे इस महापर्व की महत्ता का उल्लेख करते हुए कहा कि सरहुल में साल या सखुआ वृक्ष पर फूल चढ़ाए जाते है। यह वृक्ष सहजीवी संबंध का जीवंत उदाहरण है। यह ने केवल जीवन देता हैं, बल्कि जीवन बचाता भी हैं । उन्होंने अपने संबोधन के अंत में कहा कि समग्र तौर पर अगर कहा जाए तो सरहुल पर्व सामूहिकता और वृक्षों के संरक्षण पर जोर देता है। इसके पूर्व स्वागत भाषण डॉ विनोद कुमार, समन्वयक, टीआरएल विभाग, DSPMU ने दिया। पूर्व कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा ने भी सरहुल पर्व की महत्ता पर प्रकाश डाला। इस मौके पर सभी अतिथियों ने अखड़ा में लय और ताल के साथ सामूहिक नृत्य और गायन किया। मंच संचालन डॉ जय किशोर मंगल और डॉ डुमनी माई मुर्मू ने किया। मौके पर विश्वविद्यालय के शिक्षकों, कर्मियों और जनजातीय और भाषा विभाग के विद्यार्थियों की मौजूदगी रही। यह जानकारी पीआरओ डॉ राजेश कुमार सिंह ने दी।

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